कोई भी जीते एक ही घर में रहेगी सांसद विधायक की सीट , रतलाम - झाबुआ सीट पर सियासी जंग तेज

 झाबुआ - रतलाम लोकसभा में मध्यप्रदेश की उन चुनिंदा सीट में से एक है ,जहाँ कांग्रेस मजबूत और जीतने की स्थिति में दिख रही है। यहां मुकाबला दिग्गज आदिवासी नेता कांतिलाल भूरिया और कैबिनेट मंत्री नागर सिंह चौहान की पत्नी अनीता चौहान के बीच है। यहाँ परिवारवाद पर कोई आरोप - प्रत्यारोप नहीं होते। एक मौन सहमति बन सी गई है। मानो लग रहा हो एक दूसरे से वादा कर दिया हो कि किसी घर में तो एक सांसद - विधायक जोड़ी बनेगी ही। चाहे वह सांसद विधायक जोड़ी पति - पत्नी की हो या पिता - पुत्र की। 

कई लोग समझ नहीं पाए होंगे, दरअसल वर्तमान में झाबुआ रतलाम सीट से कांग्रेस के उम्मीदवार कांतिलाल भूरिया के बेटे वर्तमान में झाबुआ से विधायक है। तो वहीं ,भाजपा की उम्मीदवार अनिता चौहान के पति भी वर्तमान में अलीराजपुर से विधायक और मोहन सरकार में कैबिनेट वन मंत्री है। दोनों ही राजनीतिक बैकग्राउंड से आते है। 

झाबुआ विधायक विक्रांत भूरिया पिता कांतिलाल भूरिया के साथ ।

जहाँ कांतिलाल भूरिया की दावेदारी लगभग तय मानी जा रही थी , अनीता नागरसिंह की टिकट ने भाजपा के कार्यकर्ताओं सहित सभी को चौंकाया। यहां से पार्टी ने सीटिंग सांसद गुमानसिंह डामोर का टिकट काट अनीता चौहान को अपना उम्मीदवार बनाया है। बताया जा रहा है कि इसके पीछे उन पर सरकारी पद पर रहते भ्रष्टाचार के आरोप है। इसके साथ ही उनकी जनता के बीच उपस्थिती को लेकर भी कार्यकर्ताओं और जनता से पार्टी को नेगेटिव फीडबैक मिला था। ऐसे में इस बार गेंद नागरसिंह चौहान के पाले में डाल दी गई। ं

गुंडा माफिया और भील - भिलाला की जंग पर पहुंचा सियासी दंगल

नामों की घोषणा होते ही दोनों में जबरदस्त जुबानी और सियासी जंग शुरू हो गई। एक दूसरे को गुंडा ,माफिया बताने से लेकर जातिवाद तक पर वोटों की रोटी सेंकने की कोशिश भरपूर चल रही है। वैसे तो झाबुआ रतलाम सीट एसटी यानि की जनजाति के लिए आरक्षित है , लेकिन राजनीति तो जितना बांट सके उतना बांटने में विश्वास रखती है। तो हो गई भील- भीलाला के बंटवारे की कवायद शुरु। चूंकि ,कांतिलाल भूरिया भील जनजाति से आते है जिनकी इस लोकसभा सीट पर संख्या भिलाला जनजाति से ज्यादा है, ऐसे में भील होने के आधार पर ही अपने आदिवासी समाज से वोट की अपील शुरु कर दी। साथ ही हर बार की तरह अपना इमोशनल कार्ड खेलने से भी पीछे नहीं हटे। पिछली बार दिग्विजय सिंह ने जनता से वोट मांगते हुए कहा था - यह भूरिया जी का आखिरी चुनाव है, इनको जीता दीजिए। इस बार फिर से कांतिलाल भूरिया यही लाईन लेकर जनता से वोट की अपील कर रहे है। भूरिया इस चुनाव के बाद सबके साथ मिलकर समाज सेवा की बात कर रहे है। खैर केंद्र सरकार में कैबिनेट मंत्री और इतनी बार सांसद - विधायक रहकर कितनी सेवा की है ,यह भी शोध का विषय है। 

खैर , भाजपा प्रत्याशी भी पीछे नहीं है। भाजपा भी साम - दाम -दंड - भेद के साथ झाबुआ - रतलाम सीट फिर से अपने कब्जे में लेने के लिए लगी हुई है। इसी कड़ी में कुछ दिनों पहले मुख्यमंत्री मोहन यादव झाबुआ पहुंचे थे। यहाँ उन्होंने अनीता चौहान के पक्ष में एक जनसभा की । इस जनसभा में जुबान पर काबू न रख पाए मुख्यमंत्री निशुल्क मिल रहे अनाज को फोकट का बोल बुरे फंस गए । कांग्रेस ने इस बयान पर मुख्यमंत्री पर जमकर हमला बोला । धीरे - धीरे प्रदेश ही नहीं देशभर के कांग्रेस सहित विपक्ष के अन्य नेताओं ने मोहन यादव पर तीखे हमले बोले। अंत में मुख्यमंत्री को इस पर सफाई देनी पड़ गई। बहरहाल ,जो भी हो झाबुआ में पिछले कुछ महीनों में मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री का बढ़ा आगमन आदिवासी वोटबैंक पर उनकी चिंता जाहिर करता है। हालांकि , लगभग तीन साल बाद राहुल गांधी भी अलीराजपुर के जोबट आकर कांतिलाल भूरिया के लिए प्रचार करने वाले है। 

इतने दिग्गज फिर भी बदहाल झाबुआ

दिग्गजों की लड़ाई है , बड़े बड़े दावे है, बड़े - बड़े नेताओं का आगमन है। लेकिन क्या इस बार झाबुआ का कुछ भला यह दिग्गज कर पाएंगे। झाबुआ पानी की समस्या से लंबे समय से जूझता आ रहा है। यहाँ नर्मदा का पानी लाने के वादे कई बार किये गये लेकिन अब तक धरातल पर कुछ हुआ नहीं । 

झाबुआ की आदिवासी आबादी मजदूरी के लिए गुजरात पलायन को वर्षों से मजबूर है। अपने छोटे - छोटे बच्चों को लेकर अपना घर छोड़ अनजान शहरों में जिंदगी बिताने वाले इन वोटरों के लिए कब कुछ बदलाव आएगा। झाबुआ में रेल का वादा सुनते तो कई लोगों की जवानी मानो बीत गई। झाबुआ में मेडिकल काॅलेज की आस भी छात्र लगाए बैठे है। फेहरिस्त काफी लंबी है, खैर देखते है किस परिवार पर ये दारोमदार आता है और कितना पूरा होता है।

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Ritik Nayak

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