कमल और कमलनाथ का सियासी ड्रामा

कमलनाथ के भाजपा में शामिल होने के सियासी ड्रामे में आज फिर एक नया मोड़ आया। दिल्ली में प्रेस से बात करते हुए उनके विश्वसनीय व पूर्व मंत्री सज्जन सिंह वर्मा ने कहा कि कमलनाथ भाजपा में शामिल नहीं हो रहे। नकुल नाथ छिंदवाड़ा से कांग्रेस के टिकट पर ही लोकसभा चुनाव लड़ेंगे। गौर करने वाली बात यह है कि यही सज्जन सिंह वर्मा कुछ दिन पहले अपने गुरु कमलनाथ के साथ जाने की बात कर रहे थे। वे कांग्रेस को भी कमलनाथ के सम्मान का ध्यान रखने की नसीहत दे रहे थे । 

कमलनाथ भी मीडिया से बात करते हुए न तो इंकार न इजहार वाले मोड़ में नजर आए।  शायद कमलनाथ दाल गलने के बाद सीटी बजाने का इंतजार कर रहे थे। कमलनाथ इसी क्रम में अपने बेटे व साथी विधायकों के साथ दिल्ली पहुंचे। यहाँ उनके आने को लेकर उनके प्रधानमंत्री और गृहमंत्री से मिलने के कयास तेज होने लगे। हालांकि कमलनाथ दोनों से नहीं मिले लेकिन इस दिल्ली प्रवास ने राजनीतिक सरगर्मी तेज कर दी। इस बीच दिग्विजय सिंह से लेकर जीतू पटवारी जैसे मध्यप्रदेश के प्रभावी और कमलनाथ के करीबी नेता तक इसे लेकर दुविधा में नजर आए। उनके बयानों से भरोसे की कमी नजर आई। 

कांग्रेस में क्यों जरूरी है कमलनाथ 

कमलनाथ मध्यप्रदेश में फिलहाल कांग्रेस के सबसे अनुभवी नेता माने जाते है। कानपुर में जन्मे कमलनाथ ने अपना पहला चुनाव मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा से लड़ा था। 1980 में आपातकाल के बाद सत्ता में वापसी की कोशिश कर रही इंदिरा गांधी ने खुद कमलनाथ को यहाँ से चुनाव लड़वाया था। कमलनाथ के लिये वोट मांगते हुए इंदिरा गांधी ने उन्हें अपना तीसरा पुत्र बताया था। इसके बाद कमलनाथ मध्यप्रदेश और केंद्र की राजनीति में लगातार अपना कद बढ़ाते गए। कमलनाथ इस दौरान नौ बार सांसद और दो बार विधायक बने। इसके अलावा उन्होंने अलग - अलग मंत्रालयों का प्रभार भी संभाला। 2018 में वे मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बने लेकिन अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए। इन सबके अलावा वे नेता प्रतिपक्ष और प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे है।

इस कारण उनकी केंद्र से लेकर राज्य की राजनीति में मजबूत पकड़ है। वे लंबा राजनीतिक और प्रशासनिक अनुभव रखते है। इस वक्त मध्यप्रदेश में युवा जीतू पटवारी और उमंग सिंगार पार्टी की कमान संभाल रहे है। बीते विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा है।तो वहीं लोकसभा चुनाव मुहाने खड़े है। ऐसे में कमलनाथ का अनुभव उनके लिये बेहद जरूरी हो जाता है। साथ ही कमलनाथ के पार्टी छोड़ने पर उनके समर्थक विधायकों का जाना कम पहले से कम विधायकों वाली मध्यप्रदेश कांग्रेस के लिए बड़ा झटका हो सकता है।  

लगातार पार्टी छोड़ रहे कांग्रेस के बड़े नेता

पिछले कुछ समय में कांग्रेस से बड़े दिग्गज और लंबे समय से पार्टी के वफादार नेताओं ने नाता तोड़ा है। इसमें कई पूर्व मुख्यमंत्री से लेकर तमाम बड़े नेता शामिल है। 

कुछ प्रमुख नेता जिन्होंने पिछले वर्षों में कांग्रेस छोड़ी - 

  1. गुलाम नबी आजाद 

  2. मिलिंद देवड़ा 

  3. अशोक चव्हाण

  4. अनिल एंटनी 

  5. कपिल सिब्बल 

  6. हार्दिक पटेल 

  7. सुनिल जाखड़ 

  8. अश्विनी कुमार 

  9. आरपीएन सिंह 

  10. सुष्मिता देव 

  11. ज्योतिरादित्य सिंधिया

  12. जितिन प्रसाद 

  13. अल्पेश ठाकोर 

यह सूची काफी लंबी है। आखिर क्या वजह है कि इतने समय तक पार्टी से जुड़े रहने वाले नेता पिछले कुछ वर्षों में लगातार पार्टी का दामन छोड़ रहे है। इसे लेकर अलग - अलग बातें सामने आती है। कई नेता शीर्ष नेतृत्व के ऊपर भेदभाव और सौतेला व्यवहार करने का आरोप लगाते है,तो कई उनकी अनदेखी की बात करते है। सिंधिया और मिलिंद देवड़ा जैसे युवा नेताओं के मामलों में उनके ऊपर अनुभवी और सीनियर नेताओं को तरजीह देने के कारण टकराव की स्थिति साफ नजर आती है।ऐसी ही कुछ स्थिति राजस्थान में बनती नजर आ रही थी ,लेकिन सही समय पर मामला संभाल लिया गया।  दूसरी तरफ कांग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टियों का आरोप है कि यह नेता जांच एजेंसियों के डर से भाजपा में शामिल हुए। लगातार हार से पार्टी और नेताओं में अपने भविष्य को लेकर फैली हताशा भी एक कारण नजर आता है।  खैर वजह जो भी हो कांग्रेस को  इस पर चिंतन करने की आवश्यकता है। 

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Ritik Nayak

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