रंगपंचमी पर इंदौर की सड़कों पर हजारों की भीड़ के बीच एंबुलेंस को रास्ता देने के बाद इंदौर की गैर चर्चा में है। इंदौर में हर साल रंगपंचमी पर विशाल गैर का आयोजन होता है।इस 3 किलोमीटर लंबी गैर में इस बार 5 लाख के आसपास लोग शामिल हुए। पूरा इंदौर मानो सड़कों पर उतर आया हो। इंदौर का आकाश गुलाल से ढक गया। इंदौरवासी नाचते - झूमते गुलाल उड़ाते आगे बढ़ रहे थे । तभी अचानक पीछे से आ रही एक एंबुलेंस गैर के बीच फंस गई।लेकिन गैर में झूम रहें इंदौरियों ने देखते ही देखते कुछ मिनटों में एंबुलेंस का रास्ता साफ कर दिया। इसके बाद पूरे देश में इस घटना का वीडियो वायरल हो गया। जिसके चलते इंदौर और इंदौर की गैर चर्चा का केंद्र बनी रही। सबसे खास बात यह भी रही कि इतना ज्यादा रंग - गुलाल उड़ाने के बाद भी इंदौर एक घंटे के भीतर पूरे शहर को साफ कर दिया।
चलिए हम आपको बताते है क्यों है यह रंगपंचमी की गैर इंदौरियों के लिए इतनी खास। कैसे और किसने की थी इसकी शुरुआत। गैर का इतिहास कई सौ साल पुराना है। इंदौर में इसकी शुरुआत महाराजा शिवाजीराव होलकर के शासनकाल में हुई । इंदौर में होली का फाग महोत्सव 15 दिन तक चलता था। जैसे ही होली का डंडा सियासत में लगता था, वन विभाग को हिदायत दी जाती थी कि वह प्राकृतिक फूल जैसे टेसू के फूल और तमाम फुलों को इकट्ठा कर प्राकृतिक रंगों का निर्माण करें। बड़ी तादाद में प्राकृतिक रंग तैयार किया जाता था।
होली की तैयारी के लिए ढाले परिवार के यहां से होली की अग्नि आती थी, जिसे महाराज होलकर स्पर्श करते थे और फिर वह प्रज्वलित होती थी। उसके बाद होलकर रियासत का राष्ट्रगान होता था, राष्ट्रगीत होता था और होलकर आर्मी के प्लाटून के 20 घुड़सवार पांच पांच राउंड फायर करते और किले से तोप चलने की एक बड़ी जोरदार आवाज होती । ये तोप 5 बार दागी जाती थी। जिससे पूरे शहर को यह मालूम होता था कि होली का फाग उत्सव राजवाड़ा से 15 दिन के लिए शुरू हो चुका है।
इसी दौरान होली के लिए विशेष तौर से चांदी और सोने की रंग-बिरंगी पिचकरिया भरकर महाराज को दी जाती थीं। जिससे वह दरबारी के साथ और फौजी के साथ होली का रंग खेला करते थ। पंचमी के दिन का मुख्य समारोह राजवाड़ा में होता था। आम जनता पर पानी का छिड़काव होता था। पानी का छिड़काव खुशबूदार होता था, क्योंकि उसमें कई जड़ी बूटियों का मिश्रण होता था। रियासत के समय में यही गैर की शुरुआत मानी जाती है.
भारत की आजादी के साथ सियासत का दौर खत्म हुआ। 1950 में एक नई शुरुआत हुई और वह शुरुआत रंग पंचमी पर निकलने वाली गैरों से हुई। टोरी कॉर्नर इंदौर का मशहूर इलाका था, जहां से मिल श्रमिकों, श्रमिक नेता और मिल मजदूरों ने मिलकर इसकी शुरुआत की। टोरी कॉर्नर पर बड़े-बड़े कड़ाव साबुन फैक्ट्री से मंगाए जाते थे और उनमें केसरिया रंग डाला जाता था। यह रंग लोगों पर डाला जाता था और लोगों को कड़ाव में डाला जाता थ।. यह शुरुआत थी इंदौर की नई गैर की और उस जमाने के मशहूर बाबूलाल गिरी, रंगनाथ कार्णिक पहलवान, बिंडी पहलवान आदि ने मिलकर इसकी शुरुआत की और शुरुआती दौर में सिर्फ दो बैलगाड़ियों पर यह रंगारंग गैर टोरी कॉर्नर से राजवाड़ा लाई गई।
बाद में बैलगाड़ियों की तादाद बढ़ती गई। इसमें मालवा निमाड़ के आदिवासियों की टुकड़ी शामिल होने लगी और इसका आज जो हम रूप देखते हैं वह एक भव्य रूप हमारे सामने दिखाई देता है।आज इंदौरवासियों पर फायर बिग्रेड से रंग या पानी का छिड़काव होता है । कहा जाता है कि इस फायर बिग्रेड का इस्तेमाल गैर में महाराजा यशवंत राव होलकर के समय हुआ था। महाराजा यशवंत राव होल्कर के वयस्क न होने से राजकाज एक परिषद द्वारा संचालित होता था। महाराजा नाबालिग थे तब 1928-29 में इंदौर के लिए फायर ब्रिगेड वाहन खरीदे गए। इस दौरान आई रंगपंचमी से महाराजा के आदेश पर गैर में फायर ब्रिगेड से पानी और रंग छिड़कने की शुरुआत मानी जाती है। इस जश्न में उस वक्त के अंग्रेज अफसर भी बड़े चाव और खुशी से शामिल होते थे।
आज इंदौर की गैर पूरी दुनिया का दिल जीत चुकी है। देश ही नहीं विदेश के लोग भी इसका आनंद उठाने आतुर नजर आते है। मालवा के लोगों में होली से ज्यादा उत्साह रंगपंचमी को लेकर रहता है। हर साल इसका रूप और व्यापक होता जा रहा है। इस भव्य आयोजन को अब एक नई पहचान दिलाने के लिए विश्व धरोहर में शामिल किए जाने के प्रयास किए जा रहे है।
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