राजनीति में एक कहावत होती है कि पहला चुनाव हारने के लिए लड़ो, दूसरा हराने और तीसरा जीतने के लिए। हर शख्स चुनाव जीतने के लिए लड़ता है। अगर 3-4 बार लगातार हार जाए तो राजनीति छोड़ देता है। लेकिन अगर कोई आपसे कहे कि एक व्यक्ति 238 बार चुनाव हार चुका है और 239वें चुनाव की तैयारी कर रहा है,तो आपको लगेगा कोई आपको बुद्धू बना रहा है।
लोकसभा चुनाव में बड़े - बड़े नेताओं के नाम के शोर के बीच एक नाम के पद्मराजन भी खूब चर्चा का विषय है। तमिलनाडु के मेट्टूर में पंचर की दुकान लगाने वाला इस शख्स को वर्ल्ड बिगेस्ट इलेक्शन लूजर की उपाधि भी मिली हुई है। अपने 65 साल तक की उम्र में पद्मराजन ने 238 चुनाव लड़े और हारे है। उनका नाम सबसे ज्यादा चुनाव हारने के लिए लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्डस में भी दर्ज है। इस बार वे लोकसभा चुनाव में धर्मपुरी सीट से अपनी दावेदारी पेश कर रहे है। इतना ही नहीं इलेक्शन किंग के नाम से मशहूर पद्मराजन राष्ट्रपति चुनाव भी लड़ चुके है।
पद्मराजन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ,पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ,पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और राहुल गांधी जैसे बड़े नेताओं के सामने भी चुनाव लड़ चुके है। पद्मराजन कहते है कि उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता कि उनके सामने उम्मीदवार कौन है। मुझे अपनी हार के सिलसिले को आगे बढ़ाना है। उनका मानना है कि वो पिछले तीन दशकों में चुनाव में एक करोड़ से अधिक रुपये खर्च कर चुके हैं। इसमें सिक्योरिटी राशि भी शामिल है। जमानत जब्त होने पर ये राशि वापस नहीं मिलती है
पद्मराजन बताते है कि जब वह पहली बार चुनाव लड़ रहे थे तो लोग उन पर हंसते थे। लेकिन वह एहसास करवाना चाहते थे कि आम आदमी भी चुनाव लड़ सकता है। पद्मराजन कहते है कि सभी उम्मीदवार चुनाव में अपनी जीत चाहते हैं, लेकिन मुझे हारना पसंद है। मुझे जीत की तमन्ना नहीं है।
अपनी टायर रिपेयरिंग की दुकान के अलावा पद्मराजन होम्योपैथी डॉक्टर भी है। साथ ही वह स्थानीय मीडिया के लिए एक संपादक के तौर पर भी काम करते है। हालांकि ,उनका इन सब काम में चुनाव लड़ना उनके लिए सबसे जरूरी है। वे आखिरी सांस तक चुनाव लड़ते रहेंगे।पद्मराजन हर चुनाव के समय नामांकन पत्रों का रिकॉर्ड भी रखते है। उन्हें चुनावों में अब तक मछली, टेलीफोन, टोपी, अंगूठी चुनाव चिन्ह मिल चुके हैं। इस बार के चुनाव में उनका सिंगल टायर है।
पद्मराजन ने अपने चुनावी करियर का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन 2011 में किया था। तब उन्होंने मेट्टूर विधानसभा से चुनाव लड़ा और उन्हें 6,273 वोट मिले। इसमें विजेता को 75 हजार से ज्यादा वोट मिले थे।वो कहते हैं- मुझे एक वोट की भी उम्मीद नहीं थी, लेकिन इससे पता चला कि लोग मुझे स्वीकार कर रहे हैं। मैं अपनी आखिरी सांस तक चुनाव लड़ता रहूंगा। अगर मैं जीत गया तो मुझे हार्ट अटैक भी आ सकता है।
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