बागी और छोटे दलों ने बढ़ाई भाजपा -कांग्रेस की मुश्किलें, गुटबाजी खिलाएगी क्या गुल ।

मध्य प्रदेश में इस बार सियासी मुकाबला पेचीदा रूप लेता नजर आ रहा है| कांग्रेस बीजेपी दोनों में गुटबाजी चरम पर है | टिकट वितरण को लेकर नाराज भाजपा और कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने भी उनकी मुसीबत बढ़ा रखी हैं | वही जयस जैसे संगठन भी चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के लिए चुनौती साबित हो सकते हैं

पश्चिमी मध्यप्रदेश के झाबुआ विधानसभा में कांग्रेस - बीजेपी दोनों दलों के उम्मीदवारों का कड़ा विरोध हो रहा हैं | यहां से कांग्रेस व बीजेपी दोनों ही दलों से कई बागी मैदान में हैं| इसमें कांग्रेस से पूर्व विधायक रहे जेवियर मेडा तो भाजपा से पूर्व न. पा अध्य्क्ष, जिला महामंत्री और अन्य बागी उम्मीदवार भी मैदान में हैं| वहीं,अलीराजपुर जिले में भी कांग्रेस द्वारा जोबट और अलीराजपुर विधानसभा के लिए पटेल परिवार के भाभी - देवर को टिकट दी गई हैं| वहीं बीजेपी में भी भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष नगरसिंह चौहान का लगातार विरोध हो रहा हैं | दोनों पार्टी से कई पदाधिकारियों ने निर्दलीय चुनाव लड़ने की घोषणा की हैं | पिछली बार भी इन विधानसभा सीटों पर बागियों ने खेल बिगाड़ा था |

बुधनी से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के सामने कांग्रेस ने विक्रम मस्ताल को उम्मीदवार बनाया है। उनका नाम घोषित होते ही बुधनी में कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने मस्ताल का विरोध किया। इसी तरह सतना के नागौद सीट से विधायक रहे य़ादवेंद सिंह ने भी टिकट कटने के कुछ ही घंटों बाद बसपा का दामन थाम लिया।

इसके आलावा आम आदमी पार्टी ने भी 39 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार दिए हैं| आप की सक्रियता भी दोनों पार्टीयों के लिए खतरे की घंटी का काम कर रही हैं | साथ ही आदिवासी संगठन जय आदिवासी युवा शक्ति(जयस ) ने भी झाबुआ सहित कई आदिवासी बहुल सीटों पर उम्मीदवार उतारने की तैयारी पूर्ण कर ली हैं | जयस से ही आनंद राय ने भी अपने साथियों सहित के. चंद्रशेखर की भारत राष्ट्रीय समिति से चुनाव लड़ने के लिए कमर कस ली हैं |

समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी इस चुनाव में अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुकी हैं| सपा ने मप्र में में 50 सीटों पर चुनाव लड़ने का मन बनाया था| पार्टी अब तक 42 सीटों पर अपने उम्मीदवार घोषित कर चुकी हैं | वहीं बसपा भी आक्रमक नजर आ रही है | उत्तर प्रदेश की सीमा से जुड़ी लगभग तीन दर्जन सीटों के नतीजों पर बसपा सीधे तौर पर प्रभाव डाल सकती है| यही वजह है कि दोनों ही दल बसपा को अपनी ओर करने कोशिश में हैं| बसपा भी इन दोनों दलों के बागियों को अपने से जोड़ने की कोशिश में है. ऐसे में मप्र चुनाव इस बार बहुआयामी होता दिख रहा हैं | भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए बागियों और अन्य क्षेत्रीय दलों से निपटना बड़ी चुनौती साबित होगा | सरकार बनाने में इस बार निर्दलीय व छोटे दलों का बड़ा रोल हो सकता है |

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Ritik Nayak

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