मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ के आदेश के बाद धार के भोजशाला में 22 मार्च 2024 से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का सर्वे शुरू हो गया। ज्ञानवापी की तरह भोजशाला में भी एएसआई सर्वे के में यह स्पष्ट हो जाएगा कि यहां किस तरह के प्रतीक चिन्ह, वास्तु शैली और धरोहर है। भोजशाला के सर्वेक्षण करने का निर्देश को लेकर मौलाना कमालुद्दीन वेलफेयर सोसाइटी मध्य प्रदेश ने उच्च न्यायालय की इंदौर खंडपीठ के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।उन्हें यहाँ भी निराशा हाथ लगी।
एएसआई की टीम भोजशाला के 50 मीटर परिक्षेत्र में जीपीआर और जीपीएस तकनीकों से जांच कर रही है। एएसआई भोजशाला परिसर में स्थित हर चल-अचल वस्तु, दीवारें, खंभे, फर्श सहित सभी की कार्बन डेटिंग तकनीक से जांच करेगी। मध्य प्रदेश के धार जिले में स्थित भोजशाला परिसर में करीब 121 वर्ष बाद फिर से एएसआई का सर्वे होने जा रहा है। इसके पहले वर्ष 1902-1903 के दौरान एएसआई ने भोजशाला परिसर का सर्वे किया था।
धार जिले की आधिकारिक वेबसाईट के अनुसार , भोजशाला मंदिर को राजा भोज ने बनवाया था। राजा भोज परमार वंश के महान राजा थे, जिन्होंने 1000 से 1055 ईसवी तक शासन किया। इस दौरान 1037 में राजा भोज ने धार में एक महाविद्यालय बनवाया। इस महाविद्यालय में दूर -दूर से छात्र पढ़ने आते थे। इसी महाविद्यालय को बाद में भोजशाला कहा गया। इसी महाविद्यालय में माँ सरस्वती का भी एक मंदिर बनाया गया था। मंदिर में माँ सरस्वती वाग्देवी की मूर्ति स्थापित की गई थी।
बताया जाता है कि 1305 ईस्वी में अलाउद्दीन खिलजी ने भोजशाला पर हमला किया था। जिसके बाद से यह जगह पूरी तरह से बदल गई। कुछ मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक 1401 ईस्वी में दिलवार खान गौरी ने भोजशाला के एक हिस्से में और 1514 ईस्वी में महमूद शाह खिलजी ने दूसरे हिस्से में मस्जिद बनवाया था। 19वीं शताब्दी में एक बार फिर इस जगह बहुत बड़ी घटना हुई उस समय खुदाई के दौरान सरस्वती देवी की प्रतिमा मिली थी। जिस प्रतिमा को अंग्रेज अधिकारी मेजर केनकेड अपने साथ ले गया जो अभी लंदन संग्रहालय में है। इस प्रतिमा को वापस भारत लाने के लिए भी विवाद चल रहा है।
देश की आजादी के बाद भोजशाला में पूजा और नमाज को लेकर विवाद बढ़ने लगा। विवाद कानूनी लड़ाई में बदल गया। इसी दौरान 1995 में हुई घटना से बात और बिगड़ गई। जिसके बाद प्रशासन ने मंगलवार को हिंदुओं को पूजा और शुक्रवार को मुस्लिम समाज को नमाज पढ़ने की अनुमति दे दी। फिर 1997 में प्रशासन ने भोजशाला में आम नागरिकों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया। इस दौरान हिंदुओं को वर्ष में एक बार बसंत पंचमी पर पूजा करने की अनुमति दी गई। मुसलमानों को प्रति शुक्रवार दोपहर 1 से 3 बजे तक नमाज पढ़ने की अनुमति दी गई। 6 फरवरी 1998 को पुरातत्व विभाग ने भोजशाला में आगामी आदेश तक प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया, लेकिन मुसलमानों को नमाज की अनुमति जारी रही। इस आदेश से विवाद और गहरा गया था
सात अप्रेल 2003 को एएसआई द्वारा यहां एक नई व्यवस्था बनाई गई। हिंदुओं को फिर से मंगलवार को भोजशाला परिसर में प्रवेश के साथ पूजा की मंजूरी दी गई और मुस्लिम समाज को शुक्रवार को परिसर में नमाज अदा करने की मंजूरी दी। लेकिन जब भी शुक्रवार को बसंत पंचमी आती है तो विवाद और ज्यादा हो जाता है। दोनों पक्ष अपनी पूजा और नमाज के लिए विवाद करते हैं।
ऐसे में हाईकोर्ट के आदेश के बाद भोजशाला फिर से चर्चा के केंद्र में है। एएसआई अधिकारियों की 5 सदस्य वाली टीम को 6 हफ्तों में अपनी रिपोर्ट पेश करनी है। 24 अप्रैल को एएसआई को अपनी पहली रिपोर्ट देनी है। धार के लोगों के अनुसार - हाईकोर्ट के इस आदेश से लंबे समय से चले आ रहे विवाद के सुलझने की संभावना है। प्रशासन को त्योहारों पर और खास तौर पर बसंत पंचमी पर भारी सुरक्षा बल तैनात करना पड़ता है।
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