चुनाव जीतने की दौड़ में आज हर पार्टी रेवड़ी के दौड़ में प्रथम आना चाहती है। इस फ्रीबीज बांटने की होड़ में राजनीतिक दल और जनता दोनों एक दुष्चक्र में फंसती जा रही है। इन ,सबसे पहले हमें फ्रीबीज है क्या यह समझना चाहिए। फ्रीबीज के बारे में चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में दायर एक हलफनामे में बताया था कि अगर प्राकृतिक आपदा या महामारी के समय कोई दवाएँ ,खाना या पैसा मुफ्त बांटा जाए तो वह फ्रीबीज नहीं है लेकिन आम दिनों में ऐसा होता है तो उसे फ्रीबीज माना जाता है। वहीं, आरबीआई ने कहा था कि ऐसी योजनाएं जिससे क्रेडिट कल्चर कमजोर हो,सब्सिडी की वजह से कि मते गिरे ,प्राइवेट इन्वेस्टमेंट में गिराव आए और लेबर फोर्स भागीदारी कम हो तो वो फ्रीबीज कहलाती है। हालांकि हर कल्याणकारी योजना को मुफ्त रेवड़ी नहीं कहा जा सकता। आमतौर पर कल्याणकारी योजनाओं और फ्रीबीज में इसकी घोषणा के समय से अंतर किया जाता है। कल्याणकारी योजनाएं किसी भी समय घोषित की जाती है जबकि फ्रीबीज चुनाव के समय घोषित की जाती है।
हालांकि ,इस मुफ्त रेवड़ी से जहाँ एक तरफ सरकारें कर्ज में फंसती जाती है तो दूसरी तरफ जनता मुफ्तखोरी के जाल में खुद को धकेलती है। जनता को यह भी गलतफहमी होती है कि यह सब उनको मुफ्त मिल रहा है। हालांकि ,राजनीति और अर्थव्यवस्था में कुछ भी मुफ्त नहीं होता ,यहाँ पैसा आपकी एक जेब से निकालकर दूसरी में डाल दिया जाता है। आप ईसे मुफ्त समझ खुश होते रहते है। तो वहीं सरकार इसकी भरपाई आप पर टेक्स बढ़ाकर और मूलभूत ढ़ांचे जैसे स्वास्थ ,शिक्षा ,सडक आदि के बजट में कटौती से करती है। केंद्र और राज्यों सरकारों पर लगातार कर्ज का दबाव बढ़ता जा रहा है। आईएमएफ की ताजा रिपोर्ट के अनुसार फिलहाल देश पर 205 लाख करोड़ रुपए का कर्जा है। इसमें केंद्र का हिस्सा 161 लाख करोड़ और राज्यों पर 44 लाख करोड़ है। पहले राज्य सरकारें सब्सिडी दिया करती थी अब सब कुछ मुफ्त दे रही है। सरकारें ऐसी जगह पैसे लगा रही है जहाँ से उन्हें कोई कमाई नहीं हो रही। यह खर्च 11-12 प्रतिशत हुआ करता था जो लगातार बढ़ता जा रहा है।
आरबीआई के आंकड़ों के अनुसार , 2018-19 में सभी राज्य सरकारों ने सब्सिडी पर 1.87 लाख करोड़ रुपये खर्च किए थे. ये खर्च 2022-23 में बढ़कर 3 लाख करोड़ रुपये के पार चला गया है. इसी तरह से मार्च 2019 तक सभी राज्य सरकारों पर 47.86 लाख करोड़ रुपये का कर्ज था, जो मार्च 2023 तक बढ़कर 76 लाख करोड़ से ज्यादा हो गया.
ऐसे में 2024 का चुनाव सामने है,ऐसे में राज्यों में किये गए मुफ्त रेवडी के प्रयोगों के परिणाम पार्टियों को इसके नफ़ा - नुकसान के आकलन में मदद कर रहे होंगे। बहरहाल ,जहाँ शिवराज सिंह चौहान की लाडनी बहना तो भाजपा को तार गई ,लेकिन राजस्थान में अशोक गेहलोत की मुफ्त मोबाईल स्कीम कांग्रेस की नैया पार नहीं लगा सकी। कांग्रेस को जरूर इस रणनीति से कर्नाटक में फायदा मिला था ,ऐसे में 2024 के दंगल दोनों मुख्य दल फ्रीबीज का दांव पूरी ताकत से चलने की कोशिश करेंगे।
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