भूरीबाई - कभी 6 रूपए दिन पर की मजदूरी,आज पदम श्री भूरीबाई की लाखों में बिकती है पेंटिंग।

स्त्री कभी हारती नहीं

उसे हराया जाता है

समाज क्या कहेगा यह कहकर

बचपन से डराया जाता हैं

इसी डर को हराने की कहानी का नाम हैं भूरिबाई|  संघर्षो की पगडंडी से होते हुए राष्ट्रपति भवन और अमेरिका तक का यह सफर अद्भुत रहा| गोबर से लिपी दीवारों पर शौकिया पेंटिंग करने वाली भूरीबाई की कैनवास पेंटिंग आज विश्व प्रसिद्ध हैं| जिस भवन के निर्माण में कभी भूरी बाई ने 6 रूपये दिन पर काम किया था, आज भोपाल के उसी भारत भवन में भूरीबाई के चित्र लगे हैं|

भूरीबाई का जन्म मध्यप्रदेश के झाबुआ के पिटोल गाँव में हुआ | यह आदिवासी बहुल जिला माना जाता हैं| भूरीबाई भी भील समुदाय से आती हैं | भूरीबाई को बचपन से रंग भरने का शौक़ था | गांव में किसी भी शादी या त्यौहार में घर की दीवारों पर चित्रकारी करती थी| वह खुद से मिट्टी, चावल व हल्दी से रंग बनाती| इस कला को पिथौरा आर्ट बोला जाता है| इसमें बिंदी का बड़ा महत्व होता हैं | यह बिंदी वह साडी के किनारे को फाड़कर उसकी चिंदी से बनाती थी |

बचपन में भूरीबाई अपनी बहन के साथ 1 रुपया कमाने पुरे दिन खेत में काम करती थी | बचे समय में जंगल जाकर लकड़ी तोड़, उसका ग़ट्ठर बना उसे बेचती|

समय बीता और भूरीबाई शादी कर भोपाल आ गई | यहाँ भी उन्होंने मजदूरी की | भोपाल में कला के केंद्र भारत भवन को बनाने में उन्हें मजदूर का काम मिल गया|

मजदूरी के दौरान भारत भवन के डायरेक्टर जगदीश स्वामीनाथन की उनसे मुलाक़ात हुई| इस दौरान स्वामीनाथन को पता चला कि भूरीबाई दीवारों पर चित्रकारी करती हैं | स्वामीनाथन ने उनसे कागज़ पर पेंटिंग बनाने को कहा| भूरीबाई में इसे लेकर हिचक थी |जिस तरह हीरे की पहचान जोहरी करता हैं, उसी तरह भूरीबाई के अंदर छिपे कलाकार को चित्रकार और भारत भवन के डायरेक्टर स्वामीनाथन ने पहचान लिया | | स्वामीनाथन ने उन्हें चित्रकला के लिए 6 की जगह 10 रूपये प्रतिदिन देने की बात कही| भूरीबाई ने तब भारत भवन के बाहर बने मंदिर में बैठ पहली बार कागज़ पर ब्रश चलाया|

इसके बाद स्वामीनाथन उनके 5 चित्र लेकर चले गए | वह करीब डेढ़ साल बाद लौटे| फिर भूरीबाई से मिले,10 चित्र बनवाएं और 1500 रूपये दें चल दिए | धीरे धीरे कला के क्षेत्र में भूरीबाई की पहचान होने लगी| लोग उनसे चित्र बनवाने 10-15 हज़ार रुपये तक देने लगे | इसके बाद भूरीबाई ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा| उन्होंने अपनी आदिवासी पिथौरा चित्रकला को कैनवास पर उतारकर विश्व पटल पर स्थापित कर दिया|

भूरीबाई को अबतक शिखर सम्मेलन, देवी अहिल्या सम्मान,रानी दुर्गावती राष्ट्रीय सम्मान, मध्यप्रदेश गौरव और 2021 में पद्म श्री से नावाज़ा गया हैं | मप्र के जनजातीय संग्रहालय के 70 फिट लंबी दिवार पर उन्होंने अपने बचपन से चित्रकार बनने का सफर बनने का सफर खूबसूरती से उकेरा हैं | आज वह भोपाल की लोक कला अकादमी में बतौर कलाकार काम करती हैं | भूरीबाई मध्यप्रदेश के संस्कृति विभाग की भी ब्रांड अंबेडसर हैं | इसके आलावा वह किताब 'डोटेड लाइन्स ' की सह -लेखिका भी है|

Write a comment ...

Ritik Nayak

Show your support

.

Write a comment ...